सारे सोशल नेटवर्किंग साइट पर एक ही बात Tag हुई दिखाई दे रही है "मैं बागेश्वर धाम सरकार के साथ, मैं सनातनी हूं"।
लेकिन जो लोग भी ऐसा लिख रहे हैं, क्या वह सनातन के बारे में कुछ जानते हैं, पूजा-पाठ रीति रिवाज ही सनातन नहीं है. यह चीजें तो सनातन का सूक्ष्म हिस्सा है।
असल में हम लोग हजारों वर्षो की दासता के कारण, मानसिक पिछड़ेपन का शिकार हो गए हैं, हमने सनातन परंपरा की पुस्तकों को, अध्यात्म को कभी जाना ही नहीं, कभी पढ़ा ही नहीं।
धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री, जिन्हें बागेश्वर धाम सरकार भी लोग पुकारते है, स्वं स्वीकार करते है कि उन्हें संस्कृत नहीं आती तो सम्भव है वेदों से, उपनिषदो को भी उन्होंने पढ़ा ही हो।
लेकिन एक कुशल मार्गदर्शक '#जगत गुरू रामभद्राचार्य जी का सानिध्य उन्हें जरूर मिला, जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें आध्यात्मिक चेतना हासिल हुई और कमजोर मानसिकता वाले लोगों को मानसिक संबल देने का प्रयास कर रहें है। नागपुर की एक संस्था "अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति " अंधविश्वास को उजागर करने का दंभ भरती है, लेकिन चर्चा में बने रहने के लिये वह "चर्चित सनातन हस्तियों "को ही निशाना बनाती है ताकि संस्था को प्रचार मिले और जो लोग सनातन परम्परा के विरोधी है, वे संस्था को दान दे सके, जो कि करोड़ों में मिलता है। इस संस्था को अपनी सबसे पहले अपनी ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए. दूसरे पर ऊँगली उठाने से पहले अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करनी चाहिए।
संस्था रोगी का उपचार करने की जगह, उन लोगों पर नजर रख रही है जो "धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री" जैसे संतो की वजह से मानसिक बंधनों से बाहर आ पा रहें है। तरीके विवाद का विषय हो सकते है, लेकिन "अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति" समाज को जागृत करने की जगह, अपनी पब्लिसिटी में ज्यादा रूचि दिखाती लग रही है।
धर्म ग्रंथों का अगर, आम इंसान अध्ययन कर रहे होते तो उनकी चेतना इतनी जागृत हो जाती कि वह किसी मानसिक यंत्रणा से नहीं गुजरती, मन उनका मजबूत हो गया होता, तब किसी संबल की जरूरत नहीं होती।
स्वामी विवेकानंद जब तक, अमेरिका नहीं गए थे उन्हें कोई जानता नहीं था, ओशो की छवि भी इस देश में नकारात्मक बना दी गई, जिद्दू कृष्णमूर्ति सेबी शायद आम जनमानस परिचित होगा.। क्यों नहीं ऐसे संतो को हमारे पाठ पुस्तकों में जगह मिलती है।
क्या जरूरत है लुटेरों और आक्रांताओं का इतिहास हमारे अध्ययन का विषय बने,इन लुटेरों और आक्रांताओं के इतिहास ने हमें मानसिक रूप से कुंठित बना दिया है, हमारे मठ,मंदिर तोड़े गए, हमारे इनकरेंट नष्ट भ्रष्ट किए गए, जिस कारण से हम उन कुरीतियों, अंधविश्वासों से जुड़ रहे हैं, जो असल में सनातन का हिस्सा नहीं के बराबर है।
हजार साल की गुलामी से हमें शारीरिक मुक्ति तो मिल गईं, लेकिन मानसिक दासता से मुक्ति मिलना अभी बाकी है, इसी मानसिक दासता से वशीभूत होकर इंसान, आश्रम मठो,दरगाहों में जाता है, कुछ लोगों को वहां जाकर आराम मिल जाता है तो सारी भीड़ उधर की ओर ही मर जाती है।
सनातन तो भी सम्मत है, उपनिषदों पर आधारित है, अगर हम इनका अध्ययन शुरू कर देंगे, तू हमें किसी का सहारा लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी, नहीं किसी के समर्थन में या विरोध में खड़े होने की जरूरत पड़ेगी.
अंधेरा तलवार से नहीं,रोशनी से मिटता है,कमलेश
छोटा ही सही, एक चिराग हमेशा जला के रखना।